महर्षि वाल्मीकि प्रणीत यह आदि काव्य ‘श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्’ एक अद्वित्तीय ग्रन्थ है जिसमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र एक मानव के रूप में वर्णित किया गया है जो मानव चरित्र का सर्वोत्तम उत्कर्ष दर्शाता है और यह सन्देश देता है कि मानव के लिए ऐसा आदर्श और अनुकरणीय जीवन जीना दुष्कर भले ही हो परन्तु असम्भव नहीं है l श्रीराम का चरित्र समस्त मानव जाति के लिए प्रेरणा स्रोत है और इसी के चलते रामायण का विश्व की अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुआ है l कई अनुवादों में श्रीराम की कथा में कुछ बदलाव भी देखने को मिलता है लेकिन श्रीराम की मूल कथा इन सभी का आधार है l यह पुस्तक महर्षि वाल्मीकि की रामायण को साधारण जन जन की भाषा में कविता के रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है l इस प्रस्तुति में वाल्मीकीयरामायण के उन विवरणों को छोड़ दिया गया है जो मूल कथा के प्रवाह के लिए अत्यन्त आवश्यक नहीं थे l वाल्मीकीयरामायण में छह काण्ड हैं यथा बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड और युद्धकाण्ड और प्रत्येक काण्ड अनेक सर्गों में विभाजित है l इस अनुवाद में विषय और कविता का प्रवाह बनाए रखने के लिए अधिकतर कई सर्गों को एक साथ प्रस्तुत किया गया है l
यह कथा विभु श्रीराम की,
भारत के मान-अभिमान की,
महलों में बीते बचपन की,
संघर्षों से निखरे यौवन की,
दुष्टों को मार मिटाने की,
ऋषियों को निर्भय करने की,
विकट धनुष भंग करने की,
वचन पिता का निभाने की,
राज्य की जगह वन जाने की,
दुर्लभ भरत से भाई की,
खड़ाऊँ से राज्य चलाने की,
सीता को हर लिए जाने की,
बाली को मार गिराने की,
सागर पर सेतु बनाने की,
राक्षस रावण के मारे जाने की,
फिर लौट अयोध्या आने की,
भाई की शपथ निभाने की,
रामराज्य प्रजा को देने की,
मानव के प्रभु बन जाने की l
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