‘कुरल’ आदि कबीर कहे जाने वाले दक्षिण भारत के महान संत तिरुवल्लुवर द्वारा रचित ग्रन्थ है, जिसमें 133 अध्याय और 1330 कुरल (नीति वाक्य) हैं l इस ‘तिरुक्कुरल-भावानुवाद-जन जन की भाषा में’ इन 1330 कुरल को 798 पदों में प्रस्तुत किया गया है और प्रयत्न किया गया है कि मूल ग्रन्थ के भाव का यथासम्भव उसी रूप में और उसी क्रम में रखा जाए l संत तिरुवल्लुवर का काल इस्वी की प्रथम सदी रहा और उनके ये नीति वाक्य उस समय जब राजा राज्य किया करते थे, राजाओं द्वारा राज्य को सुचारू रूप से चलाने से संदर्भित थे, लेकिन वे आज भी उतने ही प्रासंगिक और सारगर्भित हैं l राजाओं के ही लिए नहीं अपितु साधारण जनमान्य के लिए भी ये उतने ही उपयोगी हैं l
हिन्दू जीवन पद्धति के अनुसार मनुष्य के लिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ सिद्ध करना उसके जीवन का लक्ष्य होता है l तिरुक्कुरल में धर्म, अर्थ और काम, इन तीनों पुरुषार्थों का विशद विवेचन किया गया है l इस ग्रन्थ का मुख्य सन्देश धर्मपूर्वक धन अर्जित कर उसके द्वारा अपनी इच्छाओं से उबर, चौथे पुरुषार्थ मोक्ष की और अग्रसर होना है l
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